शब्द भले ही निराकार हों, भले ही उनका भौतिक वजूद न हो परंतु जब शब्दों के वाण चलते हैं तो श्रोता को प्रभावित जरूर करते हैं। शब्दों का श्रोता पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह शब्दों की प्रकृति पर निर्भर करता है।
किसी भाषा, बोली या शैली में शब्दों को ही आपसी कम्युनिकेशन या वार्तालाप का आधार माना जाता है। और यह सच भी है क्योंकि शब्द ही अभिव्यक्ति की मूल इकाई है। हालॉंकि शब्दों का सृजन वर्ण से मिलकर होता है परंतु वर्ण को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाना न केवल उचित है बल्कि अव्यवहारिक ही है। संसार में कोई भी विद्वान या सामान्य नागरिक किसी विषय पर अपनी अभिव्यक्ति करता है या कुछ मॉंग करता है अथवा उसके बारे में बताता है तो यह समस्त वार्ता प्रक्रिया शब्दों के आधार पर ही होती है। इस प्रकार शब्द अभिव्यक्ति के आधार होते हैं।
एक सामान्य सी पंक्ति को यदि सकारात्मक दृष्टिकोण से सोचा जाए तो वह हमारे होठों पर मुस्कान लाती है। इसके विपरीत यदि पंक्ति को नकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाए तो वह हमारे दिल में क्रोध और माथे पर चिंता की लकीरें लाती है। सच कहा जाए तो लिखे गए शब्दों का कोई अपना अर्थ नहीं होता, जैसा हम सोचते हैं शब्द वैसे ही अर्थ हमारे जेहन में छोड़ देते हैं।
शब्द यदि स्वतंत्र अस्तित्व में हो तो उसका एक निश्चित अर्थ होता है परंतु यदि शब्द युग्म के रूप में हों तब उनका अर्थ विराम और मन के विचारों के अनुसार अलग-अलग प्रतीत होता है।
शब्दों की दुनिया भी अजीब है। यदि शब्दों को संयम के साथ बोला जाए तो वह अच्छी अभिव्यक्ति के साथ—साथ हमारे अच्छे व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब बन जाते हैं लेकिन अगर शब्द कर्कश हों और तीव्र वेग से बोले जाएं तो यह हृदय को वेदना के सागर में डुबा देते हैं।
शब्दों की दुनिया भी अजीब है। यदि शब्दों को संयम के साथ बोला जाए तो वह अच्छी अभिव्यक्ति के साथ—साथ हमारे अच्छे व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब बन जाते हैं लेकिन अगर शब्द कर्कश हों और तीव्र वेग से बोले जाएं तो यह हृदय को वेदना के सागर में डुबा देते हैं।

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